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नज़्म
नाम उस का पानियों में घोल कर पी लो ज़बाँ लुक्नत-ज़दा
हो जाए है, आँखें अलग चढ़ जाएँ हैं, जी कुछ कहे
बिमल कृष्ण अश्क
नज़्म
प्रेम-रस से लाओ भर कर ख़ुशनुमा पिचकारियाँ
हों नई दामान-ए-हस्ती पर लताफ़त-बारियाँ